Wednesday, 7 November 2012

The journey beyond Death...( Avoid the sleeping)

               We have read in last page about the suicide.News all over the world we always hear about the suicide.But what plays a role this deed in the heaven we saw according to Bankim.He divides suicide in two kinds .One who kills himself by the charge of anger and drowns in water second the other who drowns himself hearing the divine voice. The angrily act of suicide gets the painful state. Which he will have to suffer Bankim  says also about the advocate.Advocate  was indebted, anxious. So he always remained in disturbance.And suddenly  he died.
Bankim alerts the people  who always running after the money and live in disturbances. They don't  have the conscious about the spiritual life while that is the final destination.
He tells about a person who always made his mind and life like devotee.So he is now in pleasant condition,and have the spiritual powers and peace.

Now further

' जो जीव  पाप और अधर्म करके जीवन बिताते है और उसीके द्वारा उपार्जित धन से आनंद करते है - क्षण भर के लिए भी सोचते नहीं , उनको पृथ्वी में किसी प्रकार से शांति नहीं मिल सकती । इसीको नरक यंत्रणा कहते है । सर्व प्रकार रोग से ,शारीरिक और मानसिक कष्ट से ,देह और आत्मा दंड भोगा  करती है, पृथ्वी में रहते हुवे नरक यंत्रणा से पीड़ित होते रहते है । परन्तु आश्चर्य यह है की ये देख और जान कर भी ,लोग भगवान् को पुकारते नहीं ,स्मरण नहीं करते ।लोग मृत्यु शय्या पर पड़े हुवे कितने कष्ट से आर्त नाद करते है ,किन्तु भूलकर भी भगवान् का नाम नहीं लेते । मृत्यु ही मनुष्य की शान्ति है ,ये लोग शोक ताप पाकर मृत्यु की कामना करते है । समझते है की मृत्यु के बाद सब दुःख दूर हो जाएगा । परन्तु मृत्यु के बाद क्या है ? ये जानते नहीं ।
  
' आनंद धाम नाम की एक श्रेणी है । वहां केवल महात्माओ का वास होता है । जो लोग पृथ्वी पर भगवान् का नाम लेकर ,अपने को भूल जाते है केवल उन्हीको अपना सर्वस्व समर्पण करते है ,वे इस श्रेष्ठ 'आनंद धाम ' नामक लोक  में वास करते है । भगवान् में विशवास करके भी जो आत्मप्रशंसा को विष तुल्य ,हिंसा को ह्रदय में स्थान नहीं देते ,शील दया और भगवान् में विशेष युक्त हो कर ,सर्वदा जीवनयापन करते है ,वे इस धर्म स्थान का अधिकार कर सकते है । '

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कल जब बोगुरा गए तो रात्रि के चार बजे होंगे । देखने में आया की सब लोग सो रहे है । वहां से कलकत्ता आया । वहां भी देखा की लोग निद्रा मग्न है । परन्तु हम लोगो को निद्रा नहीं है । यह निद्राहीन देश है । यहाँ रात्री भी नहीं है । परन्तु ध्यान रखना निद्रा के वश में हो माँ को भूलना मत । माँ का जप करके मानव जीवन की सार्थकता लाभ करना । थोड़ी निद्रा , थोडा विश्राम और निरंतर नाम यही चाहिए । अंतिम समय बड़ा भयंकर है । नाम न जप सकने से भगवत प्राप्ति नहीं होती । सांसारिक चिन्ता लेकर कोई उर्ध्व में उठ नहीं सकता । जगदम्बा की चिंता ही अंतिम मार्ग साफ़ करती है । चिरनिद्रा का समय निकट में है । अब भगवान् का नाम लेना कब आरम्भ करोगे ? निद्रा पर विश्वास न करना । यह मनुष्य के सुख दुःख को थोड़ी देर के लिए भुला देती है । वह निद्रा ही भगवान को पुकारने में व्याघात उपस्थित करती है । यह निद्रा देवता का देवत्व भुला देती है । यह मोहनिद्रा भगवान् से मनुष्य को दूर कर देती है । और माया मोह अहंकार ले आती है । इसको अधिक प्रश्रय न देना । संध्या ,मध्यरात्रि व् प्रातः काल में ,एक बार माँ का नाम लेकर जीवन सार्थक करो । देखोगे अंत में अनंत शांति मिलेगी ।










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