In the previous
blog we saw that when the fear of death was at the peak and the soul of Bankim Chandra
felt in helplessness, a voice in his mind heard and heart encouraged then he
himself surrendered to belief of that voice. But the glamour or delusion was
still continue in him for earthly relatives.
Now further…
' मत समझो की मृत्यु ही जीवन की सीमा है और उसके बाद कुछ नहीं है ।अवश्य मृत्यु परिवर्तन ले आती है ,परन्तु यह परिवर्तन जीव के व्यक्तिगत चरित्र और स्वभाव का आमूल विनाश अथवा आमूल परिवर्तन नहीं कर सकता ।प्रत्येक आत्मा अपने पार्थिव जीवन के कर्म के अनुसार विचार लाभ करता है । और सभी कृत कर्म का फल भोग करते है ।पुण्य कार्य करने पर ब्रह्म लोक में वास करते है ।यह न्याय विचार देख कर में बहुत संतुष्ट हुवा ।मैंने अपने जीवन के किये कार्यों में कभी न्याय अन्याय का विचार नहीं किया था । कितने हत्यारों को ,अर्थ लोभ से सच्चा साबित कर , मुक्त करा दिया था । * उसे देखते हुवे मुझे यहाँ आने पर दंड कम ही मिला है ,क्यों की मेने पृथ्वी पर रहते हुवे अधिक कष्ट भोग लिया था ।विशेष करके गत एक वर्ष में जितना कष्ट अनुभव मेने किया ,उससे मेरा बहुत कुछ प्रायश्चित हो गया ।बाबा विश्वनाथ की कृपा से भीषण दंड का परिणाम कम हो गया ।तुम लोग भगवान् के निकट मेरे लिए प्रार्थना करना की में ब्रह्मलोक में उनके पादपद्म में शीघ्र पहुँच सकू । मेरे लिए किसी प्रकार का सोच न करना । तुम्हे यह जानकार आनंद होगा की में यहाँ बहुत शान्ति में हु ।
' सुरेश ने मेरी बहुत सेवा की है । अर्थ और सामर्थ्य से जहा तक हो सका उपचार किया ।प्राण प्राण से सुश्रुषा की । परन्तु नियति का लंघन नही होता ।प्रफुल्ल को सम्पूर्ण प्राण से आशीर्वाद दे रहा हु की उसने मृत्यु शय्या पर जैसी मार्मिक सेवा की, उससे उसकी मनोवाछा पूर्ण हो .और धर्म में गति रहे । अर्थ देकर किसी की सहायता करने की सामर्थ्य मुझमे नहीं है ।परन्तु मेरा आशीर्वाद तुम लोगो की अवश्य सहायता करेगा ।बहुत दिनों तक मुझे इन विषयों का ज्ञान नहीं था ।अब थोडा थोडा हो रहा है ।मेरे यहाँ आने के बाद कई एक नूतन आत्माए आई है ।
' उनमे दो साहब (अंग्रेज ),तीन हिन्दुस्तानी और दो बंगाली है ।इनलोगों में मेरे परम बन्धु प्यारे शंकर दास गुप्त भी है ।
' उनमे दो साहब (अंग्रेज ),तीन हिन्दुस्तानी और दो बंगाली है ।इनलोगों में मेरे परम बन्धु प्यारे शंकर दास गुप्त भी है ।
' यहाँ पुस्तकों के बारे में चर्चा कम होती है । प्रायः धर्मं ज्ञान की ही चर्चा अधिक होती है । ----------
................. ' पृथ्वी पर अंधे की भांति मिथ्या मुकद्दमा कर, मिथ्या व्याख्यान देकर सब को मोहित करता था,परन्तु यहाँ महात्माओं के बीच ज्ञान धर्म विषयक चर्चा सुन कर मेरा ज्ञान चक्षु खुल गया । इस शान्ति मय धाम में ज्ञान का आलोक पाकर में तो स्वयं को धन्य समझने लगा हु ।बाबा विश्वनाथ ने मेरी आशाये पूर्ण की है ।मेरी अब और किसी प्रकार की इच्छा शेष नहीं रही है ।
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* Sri Bankim Chandra was advocate in the Calcutta high court.
The story is early 20 th century before 1938. Here i would like to introduce smt Magnmayi devi who was the wife of shri Bankim Chandra.She was famous lady about her occult powers in south Calcutta .
An incidence is here referred that once From Maharastra a Maharastrian person came Calcutta to meet this lady for his wife who recentally had died.That person was very depressed after the death of his wife so he wanted to make connection with her.
Then after meeting Devi Magnmayi told that person if she came, how could you confirm that she was your wife.
She asked that person, first you must be insured the recognition sign which must be only from your wife.She asked him, 'Was she (your wife) educated or not ?' He replied,'yes, she was literate lady.'
'Then you can recognize the hand writing of your wife.'She asked,'Can You show me?'
The person showed a letter to her which was from his wife.
Then M Devi said.'your wife will give the answers what you ask in same writing that will be your wife."
After that she called his wife.And the wife of that Maharastrian person came.He asked many questions and got its reply.
He astonished when all answers were in his wife's writings.
After the death of Sri Bankim Chandra she made connection from him and he(Bankim) continued to give details about the unknown world which he himself had the curiosity about the subject in earthly life.
मृत्यु के बाद
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