Wednesday, 24 October 2012

मृत्यु के बाद 2


In the previous blog we have seen that what kind of feeling he felt when he was getting pain in his body and feeling trouble with the disease of cough. The unbearable or insufferable disease which was continue day and night .But one thing we can watch that on the last stage he had consciousness and awareness about life and death,a wish to take rest or sleep.
Yogi raj translated that manuscript in his own writing in Hindi without any comment now further…….
मृत्यु के बाद 
'जब मेरी आत्मा देह से  विच्छिन्न हो ,बाहर आकर खड़ी हो गई ,तब हमने देखा की कितनी ज्योतिर्मयी आत्माए मेरे लिए उस लोक में प्रतीक्षा कर रही है ।इधर ताक करके देखा की सभी कुटुम्बी है ,उधर देखते है तो वे आत्माए भी मेरे दिवंगत भ्राता ,भाग्नेय ,कन्या पुत्रवधू चाची ,पितामही तथा अनन्य संबंधियों की है । किसी ने मेरा हाथ पकड़ा ,तो कोई मस्तक पर हाथ रख कर आशीर्वाद दे रही है ।फिर हम सभी मिलकर हरी नाम गान करने लगे ।इस प्रकार का आनंद जीवन में एक बार भी नहीं पाया था । सोचा कितने आश्चर्य की बात है ! लोग मरने पर क्या इसी प्रकार की शांति पाते है ?ये लोग भी क्या इसी शांति को पा रहे है ?क्या ये शान्ति हमेशा रहेगी ?जैसे शरिर में रहते हुवे प्रतिदिन मृत्यु यंत्रणा भोग करता था ,ठीक उसी  प्रकार अब महाशांति अनुभव में आरही है ।दुःख क्या है ?तुम लोग भगवान् के निकट प्रार्थना करना की सदेव इसी प्रकार की शांति रह जाए और मै यंहा रह कर तुम लोगो की शुभ कामना कर सकूँ।

इस के बाद हरी ध्वनी के बाद मेरे शव को उठाया गया ।में भी उसके साथ श्मसान की और चला ।वहां पहुँच कर देखा देह का क्या परिणाम है ।और लोगो का भी यह अंतिम संस्कार देखा था ,अपने शारीर का भी देखा ।जिस शरीर के लिए इतना यतन  किया ,जिस शरीर पर तनिक भी चोट लगने पर कितना कस्तानुभव होता था ,जिस शरीर को  कोट, पेंट, गाउन* से नित्य सजाता था ,नित्य साबुन तथा गंध तेल लगा कर सुन्दर बनाता था ,उसका यह परिणाम ! उसको तोड़ तोड़ कर लोगो ने लकड़ियों पर दाल दिया और आग लगा दी ।अंत में उसके भस्मीभूत होने पर हरी ध्वनी देकर घर लोट आये । 
यह सब देख कर मुझे बहुत कष्ट  हवा । उन लोगो के साथ में भी पुराने घर को लोट आया ।देखा सारा घर सूना है ।एक मेरे चले जाने से पूरा घर शुन्यमय हो गया ।घर के सभी लोगो में अवसाद भाव था ।क्षण क्षण में हाहाकार उठता था ।में वहां खड़ा नहीं हो सका ।अपने इस लोक के कुटुम्बियों को त्याग कर नूतन देश के लिए प्रस्थान किया ।जैसे समुद्र में लहर उठती है मै उसी भांति तरंगो के ऊपर तैरता हूवा चलने लगा ।सामने आने वाले विभिन्न रंगों के,विभिन्न लोको को पार करता हूवा ऊपर उठाता गया ।उस समय शान्ति का यह गान मुझे याद पडा 
सम्मुखे रंगा मेघ करे खेला ,
ओगो तरणी वेये चलो नाही वेला ।।
में भी तैरते हुवे आलोक के देश में चलने लगा ।निचे झाँक करके देखा ,किसी को देख नहीं पाया ।जो आत्माएं मुझे लेजा रही थी ,जाते जाते कहा- 'चलो तुमको एक इतिहास प्रसिद्ध आत्मा का दर्शन करांए ।अभी यदि इनलोगों को न देख लोगे तो फिर शीघ्र देखने का अवसर नहीं पावोगे ।'मै उनके साथ आकाश मंडल में और ऊपर उठने लगा ।कोटि कोटि सूर्य चन्द्र उदित होने पर भी कदाचित इतना प्रकाश न हो जितना उस देश में है ।घर ,पेड़ ,पक्षी ,मनुष्य सभी आलोकमय । इन आत्माओं को उन्होंने मुझे दिखाया ।फिर बोली ,'ये देखो रानी भवानी ।'उनका लड़का ,कन्या ,पति ,जमाता और लड़कपन की सखी शिवानी -सभी यहाँ है । उनको देख कर मेरे मन में बड़ा आश्चर्य हूवा ।उन लोगो ने मुझे आदर के साथ पुकारा ,बुला कर बैठाया ,उपदेश दिया नाना प्रकार की धर्म कथाएं सुनाई । वहां कुछ समय रह कर वायु तरंगों तेरते तैरते दुसरे स्थान पर जाकर रुक गया ।वहां पहुचने के एक मिनट बाद एक महान आत्मा मेरे सामने आकर कड़ी होगई ।उन्होंने पूछा-' तुम आगये ।'वहां क्या क्या किया !मुझे एक एक कर बताओ ।'मैने कहा -'में निद्रा से उठकर नित्य क्रिया से निवृत हो अपना काम करता था ।इसके बाद भोजन करके कचहरी जाता था ।वहा (हाईकोर्ट )में मिथ्या मुकदमा करके अर्थोपार्जन कर घर आता था ।भगवान् का नाम लेने की इच्छा होने पर भी ले नहीं सका ।भविष्य की चिंता ,लड़कों का परिणाम अर्थ चिंता आदि में जीवन का अधिकाश भाग बीत गया ।अंत में भगवान् का नाम थोडा जप रहा था ,तभी महाकाल ने आक्रमण कर दिया और वह क्रम बंद हो गया ।भयंकर रोग यंत्रणा से विश्वनाथ! विश्वनाथ !करके पुकारा अंतिम समय में बाबा विश्वनाथ ने कृपा की अपनी शान्ति मय करोड़ में मुझे उठा लिया ।उसके बाद में यंहा आगया ।'
____________________________________* gaun was due to his service in the high court









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