In previous blog we saw that the soul of Sri Bankim Chandra told some new events like after leaving physical body he him self went with his body to funeral place (shamshaan) also comes with family members again in his old house.He felt himself very sad when he saw that his wife weeping with family members.
After that he introduced the new world.He met there many passed relatives and a great one who asked about his passed life deeds.
He tells that there r luminous world all time.No darkness.And visible things lightened and colorful.He felt there very peaceful .
His walking like on the waves.
Smt.Magnmayi was that time living near 62 lake avenue south Kolkatta.Her husband Late B,C presented himself before Magnmayi whenever she called.
Now further.............
''मेरी बात सुनकर महापुरुष ने कहा 'तुमको और कष्ट पाना नहीं होगा ।अब तुम स्वच्छंद हो ।अंत में भगवान् का नाम लेते लेते तुम मुक्त हो गए हो ।उसी समय तुम्हारा सब पाप ताप दूर हो गया ।'यह कह कर उस महापुरुष ने लाल रंग के कागज़ में कोई रंगीन वस्तु खाने को दिया ।उसे खाकर मुझे अत्यंत शान्ति मिली ।बहुत दिनों की क्षुधा तृस्ना दूर हो गयी ।एक बात और देखी । अपने पुत्र पुत्रियोंतथा अन्य कुटुम्बियों के लिए प्राण में जिस तरह का कष्ट पहले अनुभव कर रहा था, वह माया उसी द्रव्य गुण से कम हो गयी ।लोकिक माया मोह में मै अब लिप्त नहीं रहा,फिर भी पृथ्वी की और थोडा आकर्षण बना रहा ,ठीक जैसे चुम्बक लोह का आकर्षण होता है ।इसलिए दिन में एक बार पृथ्वी पर आता रहा ।सुरेश* जब पितृ पक्ष में क्षीर जल मुझे देते थे तो उसे आनंद परितोष पूर्वक ग्रहण करता था ।मृत्यु के समय चारपाई से जिस स्थान पर मेरे शारीर को उतारा गया था ,उसी स्थान पर जाकर बैठता था।अभी सुरेश के मस्तक पर हाथ रख कर गोपालगंज** से आरहा हु ।कभी कभी (संस्कार के प्रभावसे) कलकत्ता वाले अपने प्रिय बैठक खाने में रोशनी खोलकर कापी किताब झाड़ देता हु ।
एक बात है जब मेरा रोग(केंसर ) बढ गया था और रक्त गिरने लगा था ,बिस्तर पर पड़े पड़े में एक बात सोचने लगा ।एक दिन सुरेश घर में गाना गा रहा था वह गाना इस प्रकार था ---
'अगाध जले मिनेर आश्रय ,
जेले जाल फेले छे भुवन माये ।।
से जखन जाके मने करे ,
तखन तारे घोरे आने ।।
डाक्टर के डर से ,लोगो की बातो से ,मृत्यु भय से ,उस समय सुरेश के निकट जाकर फिर वापस लोटा ।मन में ऐसा भाव आया की मनसा देवी की कृपा से ओषध गुण से रोग आरोग्य हो गा ।परन्तु धीवर ने ब्यापक झाल डाल दिया था में नहीं समझ पाया मृत्यु भय से भीत हो कर किसी भी स्थान में आश्रय नहीं मिल सकता ।उसी मृत्यु ने मेरे साथ साथ आकर मुझे गोपाल गंज में मुझे पकड़ लिया ।मृत्यु ही लोक की शांति है बन्धु है ।उसी मृत्यु ने हमें दारुण रोग यंत्रणा से मुक्त किया ।अब कोई चिंता नहीं रह गयी ।
'इस प्रकार यंहा आकर सभी स्थानों में घुमता रहता हु । जिधर दृष्टी जाती देखता हु शान्ति छोड़ कर अशांति कंही नहीं है , सुख छोड़ कर दुःख नहीं है । ...........
* सुरेश बड़ा पुत्र ।
** जहा सुरेश काम करता था ।
After that he introduced the new world.He met there many passed relatives and a great one who asked about his passed life deeds.
He tells that there r luminous world all time.No darkness.And visible things lightened and colorful.He felt there very peaceful .
His walking like on the waves.
Smt.Magnmayi was that time living near 62 lake avenue south Kolkatta.Her husband Late B,C presented himself before Magnmayi whenever she called.
Now further.............
''मेरी बात सुनकर महापुरुष ने कहा 'तुमको और कष्ट पाना नहीं होगा ।अब तुम स्वच्छंद हो ।अंत में भगवान् का नाम लेते लेते तुम मुक्त हो गए हो ।उसी समय तुम्हारा सब पाप ताप दूर हो गया ।'यह कह कर उस महापुरुष ने लाल रंग के कागज़ में कोई रंगीन वस्तु खाने को दिया ।उसे खाकर मुझे अत्यंत शान्ति मिली ।बहुत दिनों की क्षुधा तृस्ना दूर हो गयी ।एक बात और देखी । अपने पुत्र पुत्रियोंतथा अन्य कुटुम्बियों के लिए प्राण में जिस तरह का कष्ट पहले अनुभव कर रहा था, वह माया उसी द्रव्य गुण से कम हो गयी ।लोकिक माया मोह में मै अब लिप्त नहीं रहा,फिर भी पृथ्वी की और थोडा आकर्षण बना रहा ,ठीक जैसे चुम्बक लोह का आकर्षण होता है ।इसलिए दिन में एक बार पृथ्वी पर आता रहा ।सुरेश* जब पितृ पक्ष में क्षीर जल मुझे देते थे तो उसे आनंद परितोष पूर्वक ग्रहण करता था ।मृत्यु के समय चारपाई से जिस स्थान पर मेरे शारीर को उतारा गया था ,उसी स्थान पर जाकर बैठता था।अभी सुरेश के मस्तक पर हाथ रख कर गोपालगंज** से आरहा हु ।कभी कभी (संस्कार के प्रभावसे) कलकत्ता वाले अपने प्रिय बैठक खाने में रोशनी खोलकर कापी किताब झाड़ देता हु ।
एक बात है जब मेरा रोग(केंसर ) बढ गया था और रक्त गिरने लगा था ,बिस्तर पर पड़े पड़े में एक बात सोचने लगा ।एक दिन सुरेश घर में गाना गा रहा था वह गाना इस प्रकार था ---
'अगाध जले मिनेर आश्रय ,
जेले जाल फेले छे भुवन माये ।।
से जखन जाके मने करे ,
तखन तारे घोरे आने ।।
डाक्टर के डर से ,लोगो की बातो से ,मृत्यु भय से ,उस समय सुरेश के निकट जाकर फिर वापस लोटा ।मन में ऐसा भाव आया की मनसा देवी की कृपा से ओषध गुण से रोग आरोग्य हो गा ।परन्तु धीवर ने ब्यापक झाल डाल दिया था में नहीं समझ पाया मृत्यु भय से भीत हो कर किसी भी स्थान में आश्रय नहीं मिल सकता ।उसी मृत्यु ने मेरे साथ साथ आकर मुझे गोपाल गंज में मुझे पकड़ लिया ।मृत्यु ही लोक की शांति है बन्धु है ।उसी मृत्यु ने हमें दारुण रोग यंत्रणा से मुक्त किया ।अब कोई चिंता नहीं रह गयी ।
'इस प्रकार यंहा आकर सभी स्थानों में घुमता रहता हु । जिधर दृष्टी जाती देखता हु शान्ति छोड़ कर अशांति कंही नहीं है , सुख छोड़ कर दुःख नहीं है । ...........
* सुरेश बड़ा पुत्र ।
** जहा सुरेश काम करता था ।
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