Tuesday, 30 October 2012

मृत्यु के बाद 7 (कुछ स्त्री के लिए )


After the death the soul whenever comes on the earth the furious rays of the sun he cannot tolerate. As in our previous post Bankim says he now habituates to live in the rosy light which we see on the earth before the sunrise or when sun goes to set in west. The sky looks beautiful shining with reddish colored.
He indicated that some souls live in the place where they always cry and feel very helpless. They ask every coming soul about the freedom from this place or go higher. They are in sorrowful state.
He introduced Ramkrishna Paramhansa in last blog.Ramkrishna always walks everywhere for preaching and gives support to rise from present state.He actually takes rest in the Brahm-Loka.
Sleeping state is completely absent there. Some time fruits may be taken. Pillow and bedding r of flowers.
 Now he is saying about his wife......

' इस समय मुझे एक बात से कुछ अशांति होती है और बीच बीच में गुप्त रूप से आकर उसको लक्ष्य करता हु ।मेरी स्त्री मानसिक रूप से अशांत हो कर कष्ट पारही है ।स्वामिहीन स्त्रियों का है ही क्या ? परन्तु उनको (मग्न्मयी देवी ) को नहीं होना चाहिये । क्योंकि वे स्मरण करते ही हमारा दर्शन पा जाती है । तब उनको स्वामी के लिए शोक करना उचित नहीं । वास्तव में तो उनकी दृष्टी में तो मेरी मृत्यु हुई ही नहीं । जब वे इच्छा करते है तब देख सकती है ।तब शोक करने का कारण क्या है ? मुझे मृतात्मा समझ यदि उन्हें शांति न मिले तो उनके पास जो लोग कातर हो कर आते है उन्हें कैसे सांत्वना मिलेगी । वे लोग जानते है की मृत्यु होने पर सब कुछ समाप्त हो जाता है । किन्तु वास्तव में आत्मा की मृत्यु नहीं होती ,इससे वे अनभिज्ञ है । अज्ञान अन्धकार में पड़े ये लोग हा हा कार कर रहे है ।यहां इस समय इन लोगो की स्थिति कुछ अनुभव में आई । पृथ्वी में जो आत्मा को पहचानती है ,उस स्त्री(मग्न्मयी)  के पास सब लोग सांत्वना के लिए आते है यदि वही दुखी रहेगी तो उन्हें ढाढस कोण बंधायेगा ?पृथ्वी में रहते समय में उनका पति था ।में अब भी वर्तमान हु । साधारण लोगो की दृष्टी में मै मृत हु ।उनकी दृष्टी में मृत नहीं ,सदा जीवित हु ।में उनके निकट मृत नहीं हु । इस लिए दो तीन बार आकर धर्म कथा सुनाता हु ।सांत्वना देकर शक्ति संचार करता हु । तब फिर क्यों इतनी अशांति है ?.....









Monday, 29 October 2012

After the death some thing new to us


In our last blog the soul of Sri Bankim Chandra says something about the earthly people who always keeps in mind that after the death there would be no link from this life or it does not continue further, He denies. He says leaving physical body may bring changes but this change does not effect to the nature or character of the person .These remains safe. Every soul gets the fruits accordingly to the deeds.

He gets satisfaction because the arrangement of the universe According to him If u get the punishment here on the earth then it may be reduced in coming punishment .He himself had the incurable disease cancer and got insufferable pain continued since one year. The place he got which was full of bliss and peace he could not imagined being  here due to lake of good karmas. But he is residing in that beautiful  enlightening place. He confesses that he was in greed of money and many innocent people were hanged by false witness.He never thought about good or bad, justice or injustice in behavior in earthly life.


He indicated about the new souls who came there, in which two foreigners and Bengali including Hindustanis.

Now here he is saying about the classified living places where the different kinds of souls are residing.

Here most interesting Divine person Ramkrishna meets and he becomes his disciple .He can go every where or classified places whether these are divine or non divine places
' यहाँ विभिन्न प्रकार के देश है , परन्तु उनमे रहने वाले लोगो की व्यवस्था कैसी है ,यह समझना कठिन है । एक  एक स्थान में एक के प्रकार की आत्मा का वास स्थान है । द्वितीय श्रेणी में आत्माओं की संख्या अधिक है ।नाना   प्रकार के पाप पुण्य के दंड भोगादि यहीं होता है । इसी स्थान पर सब निज कृत कर्म का फल भोग रहे है ।कोई कह रहें हैं -  ' क्षमा करो ! अब एसा काम नहीं करेंगे ।' कोई कहते हैं - हे पिता !यदि जन्म हो तो तुम्हरी सेवा मन, वचन, काया से करूँगा ,कभी अवज्ञा नहीं करूँगा ।' कोई कोई ऐसा कहते है ,'दुसरे के गले में छुरी देकर उनका सर्वस्व अपहरण नहीं करूँगा ।' 
' यह सब ह्रदय विदारक दृश्य देख कर आँख में आँसु आजाते है । यही जीवन का परिणाम है । मरने के बाद भी इन लोगो की रक्षा नहीं है ।  पृथ्वी में किये कर्मों का फल यहाँ भोग रहे हैं ।
' कभी कभी में इन निम्न श्रेणी की आत्माओं के निकट जाकर बैठता हु ।  मुझको देख कर ये लोग आनंद में जय ध्वनी करते है । बीच बीच में हरी नाम गान करता हु ।  इससे इन लोगो को भी आनंद होता है ।कभी कभी इनके मस्तक पर कर स्पर्श करता हु ,और सांत्वना देता हु । मेरी बात सुनकर वे प्रसन्न होते है ।
' सत्य बात सुनो यहाँ फल फुल से वृक्ष सदा अवनत रहते है । कभी कभी इच्छा होने पर दो एक फल लेले ता हु । बिना खाए काम नहीं चल सकता , ऐसी बात नहीं है । 
' हम लोग पुष्प के बिछोने और पुष्प के तकिया पर विश्राम करते है ।
' इस लोक में निद्रा नहीं है ।
' पृथ्वी पर सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय जैसा रक्तिम  प्रकाश चतुर्दिक होता  है । यहाँ सभी समय इसी प्रकार की आभा रहती है ।
' पृथ्वी पर आने पर मझे सूर्य का प्रकाश सहन नहीं होता । यहाँ का स्निग्ध शीतल  अलोक हमको प्रीति देता है ।

' ज्योतिर्मय पुरुष महात्मा रामकृष्ण देव कभी कभी यहाँ आकर धर्म ज्ञान भक्ति विषयक उपदेश देते है । कितना मधुर उनका व्याख्यान है ,कितनी मधुर उनकी मूर्ति है । मानो साक्षात सदानंद शिव है । देख कर मन प्राण में शांति लाभ होता है । साथ ही साथ मेरा समस्त सूक्ष्म देह आश्चर्य रूप से परिवर्तित हो जाता है । इसलिए उनको भगवान् कहने में भी अत्युक्ति नहीं होगी । इन्होने मुझको दीक्षा दी है । शिव की भाति  ये भी जगद गुरु है ।ये ब्रह्म लोक में वास करते है । ये इच्छा अनुसार सभी लोको में विचरण कर सकते है ।

' इनकी(रामकृष्ण ) भी मृत्यु हुई थी । इन्होने भी विषम रोग की यंत्रणा भोग किया था । देह धारण करने पर इनका भोग ग्रहण करना ही पड़ता है । व्यधिगत यंत्रणा तो है ही ,इसके बाद मृत्यु । मृत्यु शब्द सुनने से ही भय होता है .किन्तु यह वस्तुतः भयप्रद नहीं है ।
जिन लोगो के ज्ञान चक्षु है , वे आवरण को भेद कर इसे देख सकते है ,की मृत्यु कितनी शांति मय  है ।
जो लोग यह नहीं कर सकते वे ही अन्धकार में डूबे रहते है ,और भय से हाहा कार करते है ,जैसे मैंने किया था ।










Sunday, 28 October 2012

मृत्यु के बाद 5


In the previous blog we saw that when the fear of death was at the peak and the soul of Bankim Chandra felt in helplessness, a voice in his mind heard and heart encouraged then he himself surrendered to belief of that voice. But the glamour or delusion was still  continue in him for earthly  relatives.

Now further…
' मत समझो की मृत्यु ही जीवन की सीमा है और उसके बाद कुछ नहीं है ।अवश्य मृत्यु परिवर्तन ले आती है ,परन्तु यह परिवर्तन जीव के व्यक्तिगत चरित्र और स्वभाव का आमूल विनाश अथवा आमूल परिवर्तन नहीं कर सकता ।प्रत्येक आत्मा अपने पार्थिव जीवन के कर्म के अनुसार विचार लाभ करता है । और सभी कृत कर्म का फल भोग करते है ।पुण्य कार्य करने पर ब्रह्म लोक में वास करते है ।यह न्याय विचार देख कर में बहुत संतुष्ट हुवा ।मैंने अपने जीवन के किये कार्यों में कभी न्याय अन्याय का विचार नहीं किया था । कितने हत्यारों को ,अर्थ लोभ से सच्चा साबित कर , मुक्त करा दिया था । * उसे देखते हुवे मुझे यहाँ आने पर दंड कम ही मिला है ,क्यों की मेने पृथ्वी पर रहते हुवे अधिक कष्ट भोग लिया था ।विशेष करके गत एक वर्ष में जितना कष्ट अनुभव  मेने किया ,उससे मेरा  बहुत कुछ प्रायश्चित हो गया ।बाबा विश्वनाथ की कृपा से भीषण  दंड का परिणाम कम हो गया ।तुम लोग भगवान् के निकट मेरे लिए प्रार्थना करना की में ब्रह्मलोक में उनके पादपद्म में शीघ्र पहुँच सकू । मेरे लिए किसी प्रकार का सोच न करना । तुम्हे यह जानकार आनंद होगा की में यहाँ बहुत शान्ति में हु ।
      
       ' सुरेश ने मेरी बहुत सेवा की है । अर्थ और सामर्थ्य से जहा तक हो सका उपचार किया ।प्राण प्राण से सुश्रुषा की । परन्तु नियति का लंघन नही होता ।प्रफुल्ल को सम्पूर्ण प्राण से आशीर्वाद दे रहा हु की उसने मृत्यु शय्या पर जैसी मार्मिक  सेवा की,  उससे उसकी मनोवाछा पूर्ण हो .और धर्म में गति रहे । अर्थ देकर किसी की सहायता करने की सामर्थ्य मुझमे नहीं है ।परन्तु मेरा आशीर्वाद तुम लोगो की अवश्य सहायता करेगा ।बहुत दिनों तक मुझे इन विषयों का ज्ञान नहीं था ।अब थोडा थोडा हो रहा है ।मेरे यहाँ आने के बाद कई एक नूतन आत्माए आई है ।
 ' उनमे दो साहब (अंग्रेज ),तीन हिन्दुस्तानी और दो बंगाली है ।इनलोगों में मेरे परम बन्धु प्यारे शंकर दास गुप्त भी है ।

' यहाँ पुस्तकों के बारे में चर्चा कम होती है । प्रायः धर्मं ज्ञान की ही चर्चा अधिक होती है । ----------
  
................. ' पृथ्वी पर  अंधे की भांति मिथ्या मुकद्दमा कर, मिथ्या व्याख्यान देकर सब को मोहित करता था,परन्तु यहाँ महात्माओं के बीच ज्ञान धर्म विषयक चर्चा सुन कर मेरा ज्ञान चक्षु खुल गया । इस शान्ति मय धाम में   ज्ञान का आलोक पाकर में तो स्वयं को  धन्य समझने लगा हु ।बाबा विश्वनाथ ने मेरी आशाये पूर्ण की है ।मेरी अब और किसी प्रकार की इच्छा शेष नहीं रही है ।


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* Sri Bankim Chandra was advocate in the Calcutta high court.


The story is early 20 th century before 1938. Here i would like to introduce smt Magnmayi devi who was the wife of shri Bankim Chandra.She was famous lady about her occult powers in south Calcutta .
An incidence is here referred  that once From Maharastra a Maharastrian person came Calcutta to meet this lady for his wife who  recentally had died.That person was very depressed after the death of his wife so he wanted to make connection with her.
Then after meeting  Devi Magnmayi told that person  if she came, how could you confirm that she was your wife.
She asked that person, first you must be insured  the recognition sign which must be only from your wife.She asked him, 'Was she (your wife) educated or not  ?' He replied,'yes, she was literate lady.'
'Then you can recognize the hand writing of your wife.'She asked,'Can You show me?'
The person showed a letter to her which was from his wife. 
Then M Devi said.'your wife will give the answers what you ask in same writing that will be your wife."
After that she called his wife.And the wife of that Maharastrian person came.He asked many questions and  got its reply.
He astonished when all answers were in his wife's writings.
                   
            After the death of Sri Bankim Chandra she made connection from him and he(Bankim) continued to give details about the unknown world which he himself had the curiosity about the subject in earthly life.


मृत्यु के बाद 



Saturday, 27 October 2012

मृत्यु के बाद (4) भय से अभय की और

According tp the Hindu rituals one of them is Shraddh (श्राद्ध) .Late Bankim Chandra tells through his wife Smt Magnmayi Devi that in the time of Shraddha Paksha(श्राद्ध पक्ष ) he comes where his body was brought to ground after last breathing of death.He accepts whatever he was offered .
He always comes on the Earth due to attachment of his relatives and place.
Now further......... fearfulness to fearlessness

.....''.जिधर दृष्टी जाती उधर देख पड़ता है देव गण आत्मा गण योगिनी वेश  में स्त्रियाँ सभी धर्म चर्चा कर रहे है।सब के मुख पर स्वर्गीय आलोक देख पडता है ,शांति से सबका मुख प्रसन्न है ।यह सब देख कर आनंद लाभ होता है  ।यह जान कर तुम लोगो को भी सुख होगा ।पहले समझते थे की मरने के बाद किसी अज्ञात देश में चले जाना पड़ता है ।जहाँ किसी से भेंट नहीं होगी ।यह सब सोच कर मृत्यु से ड र जाता था ।अब देखता हु पृथ्वी की अपेक्षा यह अनंत धाम कितना अधिक शांति मय  है ।यहाँ अपने बंधू बांधव आत्मीय जनो से कितना अधिक आदर पता हूँ ।यहाँ अन्धकार नहीं है सब कुछ आलोकमय है ।देहावस्था में वैकुण्ठ पूरी का वर्णन पढ़ा था ।वह अब सत्य ही देखने में आरहा है ।चारो और जो भवन .वृक्ष पक्षी मनुश्यादी दिखाई दे रहे है -सभी ज्योतिर्मय है ।जहाँ तक दृष्टी जाती है ,प्र काश ही प्रकाश है ।यहाँ आलोक का राज्य है ।जब तक कोई इसे देखता नहीं तब तक कोई इस पर विस्वाश नहीं कर सकेगा ।

'जब मुझ को बाहर निकाला गया था तब सब का मुख विषाद मय था ।सतीश के मुख पर दृष्टी डालने पर पता चला की वे काय मन वाक्य से मेरे आत्मा कल्याण के लिए अपने गुरुदेव तथा बाबा विश्वनाथ से प्रार्थना कर रहे थे जिससे में उन्नति मार्ग में शिग्र उठ सकू ।उनका हर्ष विषाद से भरा मुख देख कर मेरे प्राणों ने शांति की अनुभूति की और उसी स्थान पर खड़ा  हो कर उनको आशीर्वाद दिया की उन्हें सुद्बुद्धि  लाभ हो जाये ।

' जब में समझ गया की सत्य ही मेरे जीने की कोई आशा नहीं है ,तब मेरे मन में भीषण भय हुवा ।अपनी स्त्री को गले लगा कर कहा -'में मर रहा हु ,ऊपर से उन लोगो को बुलाओ (कोठी पर से )।भय लग रहा है ।' स्त्री ने कहा -"भय क्या है भगवान् को पुकारो ।वो ही शांति देने वाले है ।'' तब उनके चक्षु में आसू देख दर मेने पोछ दिया ।मेने सोचा की जब उनकी आँखों में भी जल आगया है तो मृत्यु निश्चित है।' आब तक मेरी आशा थी की बच जायेंगे ।अब देख रहा हु की सब मिथ्या है ।स्त्री पुत्रदिको सभी को छोड़ कर जाना होगा ।जीवन में तो कोई पुण्य कर्म किया नहीं ।अब मेरा उद्धार केसे होगा ? यह सब चिंता करते करते में हताश हो गया । अकस्मात् एक क्षीण आशा मन में उदित हुई ।मनो कोई कह रहा है - "तुम्हारा समय समाप्त हो गया ।अब सब छोड़ कर जाना हो गा .परन्तु तुम दुखी क्यों होते हो ?ये  लोग तुम्हारे कोन है ?कोई कुछ नहीं है ।अब तुम परलोक में चलो ।वहां जाकर देखोगे ,तुम्हारे आत्मीय ज्योतिर्मय रूप में है ।यहाँ तुम कितना कष्ट पारहे हो ?वहां शांति ही शांति है ।मरने में कोई ड र नहीं है \वहा देखोगे ,मृत्यु में कितनी शांति  है ।" ये शब्द मेने देव वाणी की भांति सुने ,इससे भरोसा हुवा ।दुर्बल देह में बल आगया ।अब अनुभव करता हु की वस्तुतः मृत्यु से ही मुक्ति मिली है ।

'  रोग शय्या पर पड़े पड़े कभी कभी सोचता था की इस कठिन रोग केंसर से कोई बचता नहीं \अब हमारी मृत्यु का दिन दूर नहीं है । परन्तु मृत्यु शब्द सुनते ही मन भयभीत हो जता था ।बाबा विश्वनाथ !बाबा विस्वनाथ !कह कह कर रोता था ।उन्होंने मेरा कातर क्रंदन सुनकर अपनी गोद में उठा लिया ,और सभी यंत्रनाओ से मुक्ति देदी ।

.' में लोक लय से काफी दूर हूँ ।परन्तु संसार का आकर्षण एक कम से छूटा नहीं ।इसलिए पृथ्वी पर नित्य दो बार जाना पड़ता है ।बाल बच्चों का मोह एकदम कटा नहीं है ।परन्तु इस शांति भूमि को छोड़ कर आने में अस्थिर हो जाता हु ।कब इस अस्थिरता से मुक्ति मिलेगी  ? भगवान् जाने ।






मृत्यु के बाद   भय से अभय की और


Thursday, 25 October 2012

मृत्यु के बाद ..3

In previous blog we saw that the soul of Sri Bankim Chandra told some new events like after leaving physical body he him self went with his body to funeral place (shamshaan) also comes with family members again in his old house.He felt himself very sad when he saw that his wife  weeping with family members.
After that he introduced the new world.He met there many passed relatives and a great one who asked about his passed life deeds. 
He tells that there r luminous world all time.No darkness.And visible things lightened and colorful.He felt there very peaceful .
His walking like on the waves.
Smt.Magnmayi was that time living near 62 lake avenue south Kolkatta.Her husband Late B,C  presented himself before Magnmayi whenever she called.
Now further.............

''मेरी बात सुनकर महापुरुष ने कहा 'तुमको और कष्ट पाना नहीं होगा ।अब तुम स्वच्छंद हो ।अंत में भगवान् का नाम लेते लेते तुम मुक्त हो गए हो ।उसी समय तुम्हारा सब पाप ताप दूर हो गया ।'यह कह कर उस महापुरुष ने लाल रंग के कागज़ में कोई रंगीन वस्तु खाने को दिया ।उसे खाकर मुझे अत्यंत शान्ति मिली ।बहुत दिनों की क्षुधा तृस्ना दूर हो गयी ।एक बात और देखी । अपने पुत्र पुत्रियोंतथा अन्य कुटुम्बियों  के लिए प्राण में जिस तरह का कष्ट पहले  अनुभव कर रहा था, वह माया उसी द्रव्य गुण से कम हो गयी ।लोकिक माया मोह में मै अब लिप्त नहीं रहा,फिर भी पृथ्वी की और थोडा  आकर्षण बना रहा ,ठीक जैसे चुम्बक लोह का आकर्षण होता है ।इसलिए दिन में एक बार पृथ्वी पर आता रहा ।सुरेश* जब पितृ पक्ष में क्षीर जल मुझे देते थे तो उसे आनंद परितोष पूर्वक ग्रहण करता था ।मृत्यु के समय चारपाई से जिस स्थान पर मेरे शारीर को उतारा गया था ,उसी स्थान पर जाकर बैठता था।अभी सुरेश के मस्तक पर हाथ रख कर गोपालगंज** से आरहा हु ।कभी कभी (संस्कार के प्रभावसे) कलकत्ता वाले अपने प्रिय बैठक खाने में रोशनी खोलकर कापी किताब झाड़ देता हु ।

एक बात है जब मेरा रोग(केंसर ) बढ गया था और रक्त गिरने लगा था ,बिस्तर पर पड़े पड़े में एक बात सोचने लगा ।एक दिन सुरेश घर में गाना गा रहा था वह गाना इस प्रकार था ---
                                       
                                         'अगाध जले मिनेर आश्रय ,
                                         जेले जाल फेले छे भुवन माये ।।
                                         से जखन जाके मने करे ,
                                          तखन तारे घोरे आने ।।


डाक्टर के डर से ,लोगो की बातो से ,मृत्यु भय से ,उस समय सुरेश के निकट जाकर फिर  वापस लोटा ।मन में ऐसा भाव आया की मनसा देवी की कृपा से ओषध गुण से रोग आरोग्य हो गा ।परन्तु धीवर ने ब्यापक झाल डाल दिया था में नहीं समझ पाया मृत्यु भय से भीत हो कर किसी भी स्थान में आश्रय नहीं मिल सकता ।उसी मृत्यु ने मेरे साथ साथ आकर मुझे गोपाल गंज में मुझे पकड़ लिया ।मृत्यु ही लोक की   शांति है बन्धु है ।उसी मृत्यु ने हमें दारुण रोग यंत्रणा से मुक्त किया ।अब कोई चिंता नहीं रह गयी ।
'इस प्रकार यंहा आकर सभी स्थानों  में घुमता रहता हु ।  जिधर दृष्टी जाती देखता हु शान्ति छोड़ कर अशांति कंही नहीं है , सुख  छोड़ कर दुःख नहीं है ।   ...........

* सुरेश बड़ा पुत्र ।
** जहा सुरेश काम करता था ।













Wednesday, 24 October 2012

मृत्यु के बाद 2


In the previous blog we have seen that what kind of feeling he felt when he was getting pain in his body and feeling trouble with the disease of cough. The unbearable or insufferable disease which was continue day and night .But one thing we can watch that on the last stage he had consciousness and awareness about life and death,a wish to take rest or sleep.
Yogi raj translated that manuscript in his own writing in Hindi without any comment now further…….
मृत्यु के बाद 
'जब मेरी आत्मा देह से  विच्छिन्न हो ,बाहर आकर खड़ी हो गई ,तब हमने देखा की कितनी ज्योतिर्मयी आत्माए मेरे लिए उस लोक में प्रतीक्षा कर रही है ।इधर ताक करके देखा की सभी कुटुम्बी है ,उधर देखते है तो वे आत्माए भी मेरे दिवंगत भ्राता ,भाग्नेय ,कन्या पुत्रवधू चाची ,पितामही तथा अनन्य संबंधियों की है । किसी ने मेरा हाथ पकड़ा ,तो कोई मस्तक पर हाथ रख कर आशीर्वाद दे रही है ।फिर हम सभी मिलकर हरी नाम गान करने लगे ।इस प्रकार का आनंद जीवन में एक बार भी नहीं पाया था । सोचा कितने आश्चर्य की बात है ! लोग मरने पर क्या इसी प्रकार की शांति पाते है ?ये लोग भी क्या इसी शांति को पा रहे है ?क्या ये शान्ति हमेशा रहेगी ?जैसे शरिर में रहते हुवे प्रतिदिन मृत्यु यंत्रणा भोग करता था ,ठीक उसी  प्रकार अब महाशांति अनुभव में आरही है ।दुःख क्या है ?तुम लोग भगवान् के निकट प्रार्थना करना की सदेव इसी प्रकार की शांति रह जाए और मै यंहा रह कर तुम लोगो की शुभ कामना कर सकूँ।

इस के बाद हरी ध्वनी के बाद मेरे शव को उठाया गया ।में भी उसके साथ श्मसान की और चला ।वहां पहुँच कर देखा देह का क्या परिणाम है ।और लोगो का भी यह अंतिम संस्कार देखा था ,अपने शारीर का भी देखा ।जिस शरीर के लिए इतना यतन  किया ,जिस शरीर पर तनिक भी चोट लगने पर कितना कस्तानुभव होता था ,जिस शरीर को  कोट, पेंट, गाउन* से नित्य सजाता था ,नित्य साबुन तथा गंध तेल लगा कर सुन्दर बनाता था ,उसका यह परिणाम ! उसको तोड़ तोड़ कर लोगो ने लकड़ियों पर दाल दिया और आग लगा दी ।अंत में उसके भस्मीभूत होने पर हरी ध्वनी देकर घर लोट आये । 
यह सब देख कर मुझे बहुत कष्ट  हवा । उन लोगो के साथ में भी पुराने घर को लोट आया ।देखा सारा घर सूना है ।एक मेरे चले जाने से पूरा घर शुन्यमय हो गया ।घर के सभी लोगो में अवसाद भाव था ।क्षण क्षण में हाहाकार उठता था ।में वहां खड़ा नहीं हो सका ।अपने इस लोक के कुटुम्बियों को त्याग कर नूतन देश के लिए प्रस्थान किया ।जैसे समुद्र में लहर उठती है मै उसी भांति तरंगो के ऊपर तैरता हूवा चलने लगा ।सामने आने वाले विभिन्न रंगों के,विभिन्न लोको को पार करता हूवा ऊपर उठाता गया ।उस समय शान्ति का यह गान मुझे याद पडा 
सम्मुखे रंगा मेघ करे खेला ,
ओगो तरणी वेये चलो नाही वेला ।।
में भी तैरते हुवे आलोक के देश में चलने लगा ।निचे झाँक करके देखा ,किसी को देख नहीं पाया ।जो आत्माएं मुझे लेजा रही थी ,जाते जाते कहा- 'चलो तुमको एक इतिहास प्रसिद्ध आत्मा का दर्शन करांए ।अभी यदि इनलोगों को न देख लोगे तो फिर शीघ्र देखने का अवसर नहीं पावोगे ।'मै उनके साथ आकाश मंडल में और ऊपर उठने लगा ।कोटि कोटि सूर्य चन्द्र उदित होने पर भी कदाचित इतना प्रकाश न हो जितना उस देश में है ।घर ,पेड़ ,पक्षी ,मनुष्य सभी आलोकमय । इन आत्माओं को उन्होंने मुझे दिखाया ।फिर बोली ,'ये देखो रानी भवानी ।'उनका लड़का ,कन्या ,पति ,जमाता और लड़कपन की सखी शिवानी -सभी यहाँ है । उनको देख कर मेरे मन में बड़ा आश्चर्य हूवा ।उन लोगो ने मुझे आदर के साथ पुकारा ,बुला कर बैठाया ,उपदेश दिया नाना प्रकार की धर्म कथाएं सुनाई । वहां कुछ समय रह कर वायु तरंगों तेरते तैरते दुसरे स्थान पर जाकर रुक गया ।वहां पहुचने के एक मिनट बाद एक महान आत्मा मेरे सामने आकर कड़ी होगई ।उन्होंने पूछा-' तुम आगये ।'वहां क्या क्या किया !मुझे एक एक कर बताओ ।'मैने कहा -'में निद्रा से उठकर नित्य क्रिया से निवृत हो अपना काम करता था ।इसके बाद भोजन करके कचहरी जाता था ।वहा (हाईकोर्ट )में मिथ्या मुकदमा करके अर्थोपार्जन कर घर आता था ।भगवान् का नाम लेने की इच्छा होने पर भी ले नहीं सका ।भविष्य की चिंता ,लड़कों का परिणाम अर्थ चिंता आदि में जीवन का अधिकाश भाग बीत गया ।अंत में भगवान् का नाम थोडा जप रहा था ,तभी महाकाल ने आक्रमण कर दिया और वह क्रम बंद हो गया ।भयंकर रोग यंत्रणा से विश्वनाथ! विश्वनाथ !करके पुकारा अंतिम समय में बाबा विश्वनाथ ने कृपा की अपनी शान्ति मय करोड़ में मुझे उठा लिया ।उसके बाद में यंहा आगया ।'
____________________________________* gaun was due to his service in the high court









Tuesday, 23 October 2012

मृत्यु के बाद ..........1

".....में जब रोग शय्या पर पड़ा था  तब कितनी ही बार देवताओ को पुकारा कितना दोषारोपण किया ।तब नहीं samja था की यही हमारा अंतिम समय है ।जीने की बहुत आशा थी ।कितने लोगो से कितनी बातें कही ।वे लोग समझ गए की मेरी मृत्यु आसन्न है ।मेरी सेवा सुश्रुषा में कोई त्रुटी नहीं हुई : किन्तु पीड़ा शांत होती भी कैसे ?यह तो हमारा मृत्यु रोग था । कितनी रातें जागते बिताई ,कितना आर्तनाद किया ।सोचता था थोड़ी भी शान्ति मिले तो सो जाऊ ।खांसी की यंत्रणा से प्राण छोड़ने की इच्छा होती ।बोलने की इच्छा होते हुवे भी खांसी के कारण बोल नहीं पाता था ।अंततः एक दिन उसके शमन का समय आगया ।में शान्ति की निंद्रा में डूब गया ।वह मृत्यु कालीन अज्ञान की निद्रा थी ।जागने पर देखा की में देह से अलग हूँ ।"

The story which is being given originally from a widow  Shri mati Magnmay devi wife of Shri Bankim Chandra  a famous advocate in Kolkata high court.
She had  in her childhood the occult power by which she could show the activities which is very hard to get normal man and woman.But it was rare in that time. After getting marry with advocate Bankim Chandra these power rose or awoke.She could contact with passed soul easily and some one could confirm whatever they want from that soul.
After her husband death she made connection with him(Bankim Chandra) she continued to write on paper what her husband said about the unknown world and his feelings.
In 1938 kavi raj yogi Gopi nath met that lady,and got very interesting details from her.She showed those paper which were originally in the regional language of Bengal,the heading was Swamir aatmaar katha it was manuscript.Shri yogi copied it .And wrote in Hindi.
Here some parts of its being published.Hope it would be benefieted for the readers who fear from after death state.