Thursday, 25 October 2012

मृत्यु के बाद ..3

In previous blog we saw that the soul of Sri Bankim Chandra told some new events like after leaving physical body he him self went with his body to funeral place (shamshaan) also comes with family members again in his old house.He felt himself very sad when he saw that his wife  weeping with family members.
After that he introduced the new world.He met there many passed relatives and a great one who asked about his passed life deeds. 
He tells that there r luminous world all time.No darkness.And visible things lightened and colorful.He felt there very peaceful .
His walking like on the waves.
Smt.Magnmayi was that time living near 62 lake avenue south Kolkatta.Her husband Late B,C  presented himself before Magnmayi whenever she called.
Now further.............

''मेरी बात सुनकर महापुरुष ने कहा 'तुमको और कष्ट पाना नहीं होगा ।अब तुम स्वच्छंद हो ।अंत में भगवान् का नाम लेते लेते तुम मुक्त हो गए हो ।उसी समय तुम्हारा सब पाप ताप दूर हो गया ।'यह कह कर उस महापुरुष ने लाल रंग के कागज़ में कोई रंगीन वस्तु खाने को दिया ।उसे खाकर मुझे अत्यंत शान्ति मिली ।बहुत दिनों की क्षुधा तृस्ना दूर हो गयी ।एक बात और देखी । अपने पुत्र पुत्रियोंतथा अन्य कुटुम्बियों  के लिए प्राण में जिस तरह का कष्ट पहले  अनुभव कर रहा था, वह माया उसी द्रव्य गुण से कम हो गयी ।लोकिक माया मोह में मै अब लिप्त नहीं रहा,फिर भी पृथ्वी की और थोडा  आकर्षण बना रहा ,ठीक जैसे चुम्बक लोह का आकर्षण होता है ।इसलिए दिन में एक बार पृथ्वी पर आता रहा ।सुरेश* जब पितृ पक्ष में क्षीर जल मुझे देते थे तो उसे आनंद परितोष पूर्वक ग्रहण करता था ।मृत्यु के समय चारपाई से जिस स्थान पर मेरे शारीर को उतारा गया था ,उसी स्थान पर जाकर बैठता था।अभी सुरेश के मस्तक पर हाथ रख कर गोपालगंज** से आरहा हु ।कभी कभी (संस्कार के प्रभावसे) कलकत्ता वाले अपने प्रिय बैठक खाने में रोशनी खोलकर कापी किताब झाड़ देता हु ।

एक बात है जब मेरा रोग(केंसर ) बढ गया था और रक्त गिरने लगा था ,बिस्तर पर पड़े पड़े में एक बात सोचने लगा ।एक दिन सुरेश घर में गाना गा रहा था वह गाना इस प्रकार था ---
                                       
                                         'अगाध जले मिनेर आश्रय ,
                                         जेले जाल फेले छे भुवन माये ।।
                                         से जखन जाके मने करे ,
                                          तखन तारे घोरे आने ।।


डाक्टर के डर से ,लोगो की बातो से ,मृत्यु भय से ,उस समय सुरेश के निकट जाकर फिर  वापस लोटा ।मन में ऐसा भाव आया की मनसा देवी की कृपा से ओषध गुण से रोग आरोग्य हो गा ।परन्तु धीवर ने ब्यापक झाल डाल दिया था में नहीं समझ पाया मृत्यु भय से भीत हो कर किसी भी स्थान में आश्रय नहीं मिल सकता ।उसी मृत्यु ने मेरे साथ साथ आकर मुझे गोपाल गंज में मुझे पकड़ लिया ।मृत्यु ही लोक की   शांति है बन्धु है ।उसी मृत्यु ने हमें दारुण रोग यंत्रणा से मुक्त किया ।अब कोई चिंता नहीं रह गयी ।
'इस प्रकार यंहा आकर सभी स्थानों  में घुमता रहता हु ।  जिधर दृष्टी जाती देखता हु शान्ति छोड़ कर अशांति कंही नहीं है , सुख  छोड़ कर दुःख नहीं है ।   ...........

* सुरेश बड़ा पुत्र ।
** जहा सुरेश काम करता था ।













Wednesday, 24 October 2012

मृत्यु के बाद 2


In the previous blog we have seen that what kind of feeling he felt when he was getting pain in his body and feeling trouble with the disease of cough. The unbearable or insufferable disease which was continue day and night .But one thing we can watch that on the last stage he had consciousness and awareness about life and death,a wish to take rest or sleep.
Yogi raj translated that manuscript in his own writing in Hindi without any comment now further…….
मृत्यु के बाद 
'जब मेरी आत्मा देह से  विच्छिन्न हो ,बाहर आकर खड़ी हो गई ,तब हमने देखा की कितनी ज्योतिर्मयी आत्माए मेरे लिए उस लोक में प्रतीक्षा कर रही है ।इधर ताक करके देखा की सभी कुटुम्बी है ,उधर देखते है तो वे आत्माए भी मेरे दिवंगत भ्राता ,भाग्नेय ,कन्या पुत्रवधू चाची ,पितामही तथा अनन्य संबंधियों की है । किसी ने मेरा हाथ पकड़ा ,तो कोई मस्तक पर हाथ रख कर आशीर्वाद दे रही है ।फिर हम सभी मिलकर हरी नाम गान करने लगे ।इस प्रकार का आनंद जीवन में एक बार भी नहीं पाया था । सोचा कितने आश्चर्य की बात है ! लोग मरने पर क्या इसी प्रकार की शांति पाते है ?ये लोग भी क्या इसी शांति को पा रहे है ?क्या ये शान्ति हमेशा रहेगी ?जैसे शरिर में रहते हुवे प्रतिदिन मृत्यु यंत्रणा भोग करता था ,ठीक उसी  प्रकार अब महाशांति अनुभव में आरही है ।दुःख क्या है ?तुम लोग भगवान् के निकट प्रार्थना करना की सदेव इसी प्रकार की शांति रह जाए और मै यंहा रह कर तुम लोगो की शुभ कामना कर सकूँ।

इस के बाद हरी ध्वनी के बाद मेरे शव को उठाया गया ।में भी उसके साथ श्मसान की और चला ।वहां पहुँच कर देखा देह का क्या परिणाम है ।और लोगो का भी यह अंतिम संस्कार देखा था ,अपने शारीर का भी देखा ।जिस शरीर के लिए इतना यतन  किया ,जिस शरीर पर तनिक भी चोट लगने पर कितना कस्तानुभव होता था ,जिस शरीर को  कोट, पेंट, गाउन* से नित्य सजाता था ,नित्य साबुन तथा गंध तेल लगा कर सुन्दर बनाता था ,उसका यह परिणाम ! उसको तोड़ तोड़ कर लोगो ने लकड़ियों पर दाल दिया और आग लगा दी ।अंत में उसके भस्मीभूत होने पर हरी ध्वनी देकर घर लोट आये । 
यह सब देख कर मुझे बहुत कष्ट  हवा । उन लोगो के साथ में भी पुराने घर को लोट आया ।देखा सारा घर सूना है ।एक मेरे चले जाने से पूरा घर शुन्यमय हो गया ।घर के सभी लोगो में अवसाद भाव था ।क्षण क्षण में हाहाकार उठता था ।में वहां खड़ा नहीं हो सका ।अपने इस लोक के कुटुम्बियों को त्याग कर नूतन देश के लिए प्रस्थान किया ।जैसे समुद्र में लहर उठती है मै उसी भांति तरंगो के ऊपर तैरता हूवा चलने लगा ।सामने आने वाले विभिन्न रंगों के,विभिन्न लोको को पार करता हूवा ऊपर उठाता गया ।उस समय शान्ति का यह गान मुझे याद पडा 
सम्मुखे रंगा मेघ करे खेला ,
ओगो तरणी वेये चलो नाही वेला ।।
में भी तैरते हुवे आलोक के देश में चलने लगा ।निचे झाँक करके देखा ,किसी को देख नहीं पाया ।जो आत्माएं मुझे लेजा रही थी ,जाते जाते कहा- 'चलो तुमको एक इतिहास प्रसिद्ध आत्मा का दर्शन करांए ।अभी यदि इनलोगों को न देख लोगे तो फिर शीघ्र देखने का अवसर नहीं पावोगे ।'मै उनके साथ आकाश मंडल में और ऊपर उठने लगा ।कोटि कोटि सूर्य चन्द्र उदित होने पर भी कदाचित इतना प्रकाश न हो जितना उस देश में है ।घर ,पेड़ ,पक्षी ,मनुष्य सभी आलोकमय । इन आत्माओं को उन्होंने मुझे दिखाया ।फिर बोली ,'ये देखो रानी भवानी ।'उनका लड़का ,कन्या ,पति ,जमाता और लड़कपन की सखी शिवानी -सभी यहाँ है । उनको देख कर मेरे मन में बड़ा आश्चर्य हूवा ।उन लोगो ने मुझे आदर के साथ पुकारा ,बुला कर बैठाया ,उपदेश दिया नाना प्रकार की धर्म कथाएं सुनाई । वहां कुछ समय रह कर वायु तरंगों तेरते तैरते दुसरे स्थान पर जाकर रुक गया ।वहां पहुचने के एक मिनट बाद एक महान आत्मा मेरे सामने आकर कड़ी होगई ।उन्होंने पूछा-' तुम आगये ।'वहां क्या क्या किया !मुझे एक एक कर बताओ ।'मैने कहा -'में निद्रा से उठकर नित्य क्रिया से निवृत हो अपना काम करता था ।इसके बाद भोजन करके कचहरी जाता था ।वहा (हाईकोर्ट )में मिथ्या मुकदमा करके अर्थोपार्जन कर घर आता था ।भगवान् का नाम लेने की इच्छा होने पर भी ले नहीं सका ।भविष्य की चिंता ,लड़कों का परिणाम अर्थ चिंता आदि में जीवन का अधिकाश भाग बीत गया ।अंत में भगवान् का नाम थोडा जप रहा था ,तभी महाकाल ने आक्रमण कर दिया और वह क्रम बंद हो गया ।भयंकर रोग यंत्रणा से विश्वनाथ! विश्वनाथ !करके पुकारा अंतिम समय में बाबा विश्वनाथ ने कृपा की अपनी शान्ति मय करोड़ में मुझे उठा लिया ।उसके बाद में यंहा आगया ।'
____________________________________* gaun was due to his service in the high court









Tuesday, 23 October 2012

मृत्यु के बाद ..........1

".....में जब रोग शय्या पर पड़ा था  तब कितनी ही बार देवताओ को पुकारा कितना दोषारोपण किया ।तब नहीं samja था की यही हमारा अंतिम समय है ।जीने की बहुत आशा थी ।कितने लोगो से कितनी बातें कही ।वे लोग समझ गए की मेरी मृत्यु आसन्न है ।मेरी सेवा सुश्रुषा में कोई त्रुटी नहीं हुई : किन्तु पीड़ा शांत होती भी कैसे ?यह तो हमारा मृत्यु रोग था । कितनी रातें जागते बिताई ,कितना आर्तनाद किया ।सोचता था थोड़ी भी शान्ति मिले तो सो जाऊ ।खांसी की यंत्रणा से प्राण छोड़ने की इच्छा होती ।बोलने की इच्छा होते हुवे भी खांसी के कारण बोल नहीं पाता था ।अंततः एक दिन उसके शमन का समय आगया ।में शान्ति की निंद्रा में डूब गया ।वह मृत्यु कालीन अज्ञान की निद्रा थी ।जागने पर देखा की में देह से अलग हूँ ।"

The story which is being given originally from a widow  Shri mati Magnmay devi wife of Shri Bankim Chandra  a famous advocate in Kolkata high court.
She had  in her childhood the occult power by which she could show the activities which is very hard to get normal man and woman.But it was rare in that time. After getting marry with advocate Bankim Chandra these power rose or awoke.She could contact with passed soul easily and some one could confirm whatever they want from that soul.
After her husband death she made connection with him(Bankim Chandra) she continued to write on paper what her husband said about the unknown world and his feelings.
In 1938 kavi raj yogi Gopi nath met that lady,and got very interesting details from her.She showed those paper which were originally in the regional language of Bengal,the heading was Swamir aatmaar katha it was manuscript.Shri yogi copied it .And wrote in Hindi.
Here some parts of its being published.Hope it would be benefieted for the readers who fear from after death state.

Thursday, 20 September 2012

क्या है स्वधर्म और परधर्म !


"स्व धर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ।।"
हे अर्जुन! स्व धर्म का पालन करते हुवे मृत्यु को प्राप्त होना श्रेय कर है । लेकिन परधर्म में मरना भयप्रद है ।

स्व धर्मं और परधर्म  क्या है इस पर विचार करने पर हमें ज्ञात हो सकता है की हमारी दिशा किस और होनी चाहिए।
यहाँ हिन्दू मुस्लिम सिख इशाई इत्यादि संकुचित अर्थ नहीं लेने चाहिये ।
मूल रूप से देखे की स्व क्या है और पर क्या है ।
हमारी चेतना वस्तुतः संसार के कार्यो में उल्जी रहती है । प्रति क्षण अपनी प्रवृतियों कल्पना का तानाबाना बुनने में व्यस्त रहती  है ।
चेतना का केंद्र बिंदु कर्ता पन से ग्रस्त रहता है । यह कर्ता ही हमारी चतना बनी हवी रहती जिसे हम अहम्   बुद्धि कह सकते है । शारीर की इन्द्रियों के माध्यम से कर्म इसके द्वारा होते रहते है ।
अहम् से उपरि स्तर शुद्ध आत्मा का है जिसे 'स्व " कहा जाता है । जब चेतना अपनी स्थिति से उपर को चल ने के लिए जो साधना मार्ग  अपनाती है तो वही उसका धर्म बन जाता है ।इसे ही गीता की भाषा में "स्व धर्म " कहा है ।
परन्तु जब हमारी चतना अपने स्तर से नीचे इन्द्रियों के मार्ग से गमन कराती हुई संसार में रमण कराती है तो वह 'परधर्म " कहा जाता है ।क्यों कि आत्मा से परे है अतः इस मार्ग के साधन पर धर्म ही कहे जायेंगे ।
जब कृष्ण यह कहते है की पर धर्म भयावह है तो  मतलब यही है की इन्द्रियों का अनुसरण बड़ी भयावह स्थिति उतपन्न करदेती है । स्व धर्म का थोडा पालन भी श्रेय देने वाला है ।
उपनिषद के अनुसार दो ही मार्ग है एक श्रेय दूसरा प्रेय मार्ग ।
स्वधर्म को ही श्रेय जनक कहा है ।
परधर्म प्रिय है इन्द्रियों को इसलिए प्रेय मार्ग है ।
हम को कृष्ण के सही अर्थ समझने में भूल नहीं  करनी चाहिए ।
पर धर्म का अर्थ हिन्दू धर्म के अलावा दूसरा धर्म होगा यह बचकानी बात होगी क्योंकि उस काल में दूसरा सम्प्रदाय का कही उल्लेख नहीं मिलता ।
फिर कृष्ण सम्प्रदाय शब्द ही प्रयोग करते न की धर्म ।








Sunday, 2 September 2012

क्या चुने अमृत या मृत्यु ...!


जीवन के बारे में विचार करते है तो जन्म मृत्यु एक आवश्यक घटना चक्र प्रतीत होता है   जिससे बिरले पुरुष ही निकल पाते है।
मृत्यु के बाद का चक्र क्या है  इस पर व्यक्ति के जीवन भर का लेखा जोखा ही मार्ग तय कर ता है।
अमृत और मृत्यु दो शब्दों पर ध्यान देंगे तो रहस्य ज्ञात हो सकेगा
वैदिक मान्यता के अनुसार विश्व में तीन पदार्थ नित्य है  इस्वर  आत्मा और पृकृति ।
ईश्वर  का ॐ नाम विख्यात है ।तीन शब्द है अ उ म ।इन तीनो से मिलकर ओम  बना है । अ परमात्मा का संकेत करता है तो उ आत्मा का तथा म प्रकृति का बोधक है ।
उ आत्मा जब विश्व में कर्म करते हुवे सांसारिक पदार्थो को महत्ता  देता है  उसके लिए म यानी प्रकृति मुख्य  है
ये मनुष्य प्रकृति को आगे रखने वाला कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं । उसके लिए वही सत्य पदार्थ है
हम देखते है मृत्यु शब्द ।ऋत  से अंग्रेजी का राइट शब्द बना है अर्थात उसीको ठीक समझाना ।
म + ऋत +यु =मृत्यु ।
उनलोगों की निश्चय ही मृत्यु होती है जो म को आगे रख कर वही  'ऋत " सत्य है मान कर 'यु '  यानि जुड़े रहते है ।
तात्पर्य है की म यानी संसार के पदार्थो में आसक्ति उसे इस  मृत्यु के चक्र में डाले रहती है । भीषण यातना का शिकार होता है ।
दूसरी स्थिति है अमृत की । इस के बारे में विचार करे तो ज्ञात होगा ये लोग परमशक्ति इश्वर को सर्वो परि  मान कर चलते है ।
अ +म +ऋत ।
इस शब्द से यह ज्ञान होगा ।
अ अर्थात भगवान या अज्ञात  चेतन सत्ता । इस अमृत शब्द में सबसे आगे रखा है " अ " इसके पीछे है म यानी सांसारिक पदार्थ ।
संसार के पदार्थो की आवश्यकता  सभी को रहती है वह अमृत प्राप्त करने वाले भी रखते परन्तु वे इश्वर को प्रधानता देते है । ये ही लोग योगादि आवश्यक क्रियाए करते है और दुनिया में विचरते है ।
यहाँ ऋत का तात्पर्य वही सत्य  जिसके लिए ।
यह आश्चर्य ही है ये शब्द अमृत और मृत्यु दो नो में मोजूद है ।
सो हम किसी के जीवन को देख कर अनुमान लगाना चाहे तो  मुश्किल नहीं ।
मृत्यु का चक्र उन लोगो को जकडे रहता है जो उस परम सत्ता की अवहेलना करता हुवा जीवन पूरा करता है ।अपने अहम् के वशीभूत लोक में सभी के दुःख का कारण बनता है तथा परलोक में उस नियंता से प्रताड़ित होता हुवा अनेको योनियों में अनंत काल तक स्वयं दुःख भोगता है ।
हमको कही जाना है तो वही जो इस ज्ञान को रखता है ।
अन्यथा जीवन में महान हानि है इसमें कोई संदेह नहीं ।

क्या चुने अमृत या मृत्यु ...!














Saturday, 18 August 2012

चीन में सपर रिब सूप के नाम से बेचा जाने वाला द्रव


Spare Rib Soup - China....

OMG.. This is the most horrifying and disgusting thing i have ever seen in my life. “The Baby Soup is called in the local jargon ‘Spare Rib Soup’ and is not available on a daily basis. The reporter who originally wrote the article in Chinese said that he had to wait a couple of weeks until a baby was available. A couple who had two daug
hters already had a third pregnancy which they aborted when they found out at 5 months it was again a girl. So they contacted the restaurant and sold their aborted daughter. Babies which are close to term (i.e. 9 months) cost 2,000 yuan (about US$ 290) The ones that are aborted earlier only cost a few hundred yuan (100 yuan is US 14.50) Just buying the placenta alone also costs a couple of hundred yuan (about US$ 30)

Shocking news circulated in China. A town in Canton is now on trend taking baby herbal soup to increase health and sexual performance/stamina. The cost in China currency = approx $ 4000. A factory manager was interviewed and he testified that it is effective because he is a frequent customer. It is a delicacy whereby expensive herbs are added to boil the baby with chicken meat for 8 hours boiling/steaming. He pointed to his second wife next to him, who is 19 (he is 62), and testified that they have sex everyday.
 चीन में सपर रिब सूप के नाम से बेचा जाने वाला द्रव जिसमे गर्भ पात करवा कर खरीदफरोक्त  होती है सेक्स के लिए कार्य में लिया जाता है 62 साल का वृद्ध 19 साल की लड़की के साथ विवाह कर रोजाना व्यभिचार किया जाता है 
यह फोटो ओ एम् जी से ली गई है साथ में विवरण भी दिया है 

Saturday, 4 August 2012

प्रणाम

Some mysterious meanings r playing behind the word Pranaam. Simply we see the act when someone gives the respect to other with happy mood.A person who has acquired some virtues which r useful for society or mankind can get respect or Pranaam and aslo he can give respect to others.Pr+an+am three words composition say the story.The person who has the gravity in is Knowledge and Karma has the ability for(take and give) Pranaam.An+Am , Separately after प्र, An अन and am अम makes प्रणाम in Sanskrit language ज्ञान (knowledge) कर्म (deeds) we know well used. ज्ञ+ अन and in word कृ+अम one can watch easily.So An and Am r symbolically the indication of knowledge and deed. In the beginning the word Pr has been attachedप्र (pr) produce the gravity in both (an and am).The massage behind this word is one must live in pure consciousness which is really the ज्ञान and do all the activities accordingly (कर्म) .It would be only the way to get Pranaam and do Pranaam.And make good society on the Earth.