गणेश की उत्पति के सम्बन्ध में यह विचार प्रचलित है की जब पार्वती स्नान आदि कर्म को उपस्थित थी तो स्वयं के मेल से एक बालक का निर्माण किया और पहरे पर खड़ा कर दिया | शिव के पार्वती से मिलने आने पर वह बालक प्रतिरोध करता है इस पर शिव के त्रिशूल से उस बालक का शिरछेदन हो जाता है | तब पार्वती की गुहार पर नए सिर का आरोपण ,जो वस्तुतःनव प्रसूत हाथी का होता है ,किया जाता है | इसी को गणेश नाम से ख्याति मिली है |जो विध्नहर्ता और शुभ कर्मो में प्रथम वन्दनीय माना जाता है |लोक में इस प्रकार की आकृति का बालक रहा या नहीं इस पर विवाद हो सकता है परन्तु हमारे व्यक्तित्व में भीतर की यात्रा में इस हस्ती गणेश का अवश्य जन्म संभव होता है | आध्यात्म की और चलने पर हमारी बुद्धि की मलिनता को हटाना अतिआवश्यक है | संस्कृत भाषा में पार्वती का पर्याय उमा को कहा है | जिसका अर्थ बुद्धि है | बुद्धि जब आध्यात्म मार्ग पर आरूढ़ होती है तो वह उसका स्नान कर्म(ध्यान आदि क्रियाये भी कर्म है ) कहा जाना चाहिए | जल जो आपः से संबोधित है | इसका तात्पर्य कर्म से भी है | जब कर्म आदि व्यापार से शुद्धता का ध्यान रखते हुवे व्यवहार होता है तो एक प्रकार का सूक्ष्म तत्व जिसे अहम् कहते है निर्माण होता रहता है | यह अहम् वस्तुतः बुद्धि का मल है जो बुद्धि का स्व निर्मित है |जब तक यह सूक्ष्म अहम् द्वार पर खडा है तब तक शिव या कल्याण की आशा न्यून ही रहती है | परन्तु चुकी शिव, बुद्धि की शुद्ध क्रियायों को ध्यान में रखता है उसका मिलना अवश्यम्भावी है |सो शिव की कृपा से उस अहम् का सिर छेदन होता | लेकिन अहम् का छेदन भी त्रिशूल द्वारा संभव हो पाता है | तात्पर्य है ये शूल शिव के द्वारा प्रेषित होने से इसे कल्याण कारी मानना चाहिए | व्यवहार में कल्याण के लिए ज्ञान ,कर्म और भाव का प्रयोग ही अहम् के लिए त्रिशूल है जिससे अहम् नष्ट प्रायः सा होजाता है |अब शिव प्रत्यक्ष सामने है परन्तु पार्वती अहम् के बिना शिव के संग रहना नहीं चाहती | अहम् को तत्क्षण अपनी हस्ती(हाथी ) का आभास होता है ,इसे ही पुराणकार हाथी के शिर रोपण से दर्शाता है | अहम् का यह रूप निर्विध्न हो कर सर्वत्र प्रसंशनीय बन कर रहता है |जिसकी अंतिम परिणति आपः (दिव्य कर्म ) में ही मानी गयी है |जिसे प्रतिमा को जल (आपः ) में बहाकर लोक में हम देखते है |
Monday, 9 September 2013
Rising of LORD GANESHA
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