Sunday, 10 March 2013

शिव रात्रि


शिव रात्रि को एक अन्य दृष्टी से भी समझ सकते है | इस युगल शब्द में रात्रि शब्द पर विचार करे तो ज्ञात होगा की रात्रि  ,दो शब्दों से बना है | रा + त्रि |संस्कृत भाषा में रा शब्द का तात्पर्य देना होता है | to give | त्रि को तीन की संख्या से सभी परिचित है | ये रात्रि अंधकार की सूचक केसे है | क्यों हम लोग ये शब्द प्रकाश के विपरीत अर्थ में प्रयुक्त करते है |वस्तुतः हम लोग संसार में अपनी अभिव्यक्ति इन तीन से करते है | हमारे  अन्नमय ,प्राणमय और मनोमय कोष ये तीन ही सहायक होते है | ये तीन कोष ही देते है | व्यहवारिक जगत में | हमारी क्रिया ,हमारे संकल्प हमारे भाव इत्यादि |तब हम वस्तुतः रात्रि में ही जीते है | यहाँ कृष्ण भगवान के गीता के वचनों को याद किया जासकता है | जो सांसारिक लोगो के लिए दिवस है , वह वस्तुतः योगीओं के लिए रात्रि ही है | यहाँ गूढ़ अर्थ में यही  अर्थ होता है की साधारणतः व्यक्ति इस अंधकार मय जीवन में जीता है | क्योंकि इन तीन कोशो को मात्र सर्वे सर्वा मानकर व्यक्ति विचरता है | परिणाम स्वरूप संसार में विडंबनाओ का पदे पदे सामना करना ही  पड़ता है | अशांति और दुःख छुटाए नहीं छूटते | यह है रात्रि | जो अन्धकार से ओतप्रोत है | जो अज्ञान की सूचक मानी जाती है |परन्तु  इन स्तरों को जब शिव से जोड़ा जाता है | जो परामानसिक स्तर है | वहां से कल्याणकारी धाराएं बह कर हमारी चेतना को संसार के लिए उपयुक्त बना देती है | तब शिव रात्रि सार्थक बन पड़ती है |ये जन जन के भीतर का मार्ग ही कल्याण का मार्ग बनता है , फिर रात्रि को मात्र रात्रि नहीं रहने देता उसे शिव स्वरूप बना देता है | ये तीनो कोष कल्याण कारी बनकर संसार में सुख का कारण बन जाते है | 

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